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इति आर्डिनेंस कथा –
आर्डिनेंस क्या होता है ,पता नहीं था ! सामने वाले तिवारी जी उस दिन सुबह सुबह
घर के सामने प्रकट हो गए । कहने लगे की पाण्डेय जी, इ राहुल बाबा कुछ फाड़ने का
धमकी दिए हैं बोले हैं की बकवास है , बवाल हो गया है । हम भी घबराए, सोचे की ऐ
भाई मामला सिरिअस बुझा रहा है । पूरा बात मालूम करने के लिए गुप्ता जी को बुलाया गया!
मिसेज़ को बोल दिए थे की जी बड़ा घटना पर विचार विमर्श होगा थोडा चाय चुक्कड़ का व्यवस्था कर देना , तो मुह बिदका के बोली की बड़ी काम है , अपने बना लीजियेगा ! ऐसे भी पूरा दिन करते का हैं आप ? खैर उसकी बात सुनने की इतनी आदत पड गयी है की मनमोहन भाई को टक्कर दे सकते हैं !
जी , तो गुप्ता जी आये, चाय बनाया गया , मजमा लगाया गया और गुप्ता जी एक प्रवाचक की तरह भाषण शुरु किये ! बोले की” ऐ भाई बात इ है की छोटका बाबा अपने पापा टाइप लगते हैं भाई
उ भी बड़ा खिसियाते थे, आ एक बार तो मनमोहन जी के अन्दर में योजना आयोग को बन्दरों का
समूह बता दिए थे | उ टाइम भी बड़ा हो हल्ला हुआ था | ८१ का बात है |”
तिवारी जी से बर्दास्त न हुआ पूछिये दिए,की “ऐ भाई गुप्ता जी इ बताइये की छोटका बाबा का फाड़ने का धमकी दिये हैं | कौनो सीरियस बात तो नहीं है?”
गुप्ताजी उवाच “नहीं भाई कागज़ है वही फाड़े का बात किये हैं “,
हम से न रहा गया सो पूछ दिए “ऐ भाई गुप्ताजी इ “आर्डिनेंस” का होता है भाई ?”
गुप्ताजी ने तसल्ली से जबाब दिन शुरू किया
“ देखिये जब कोई कानून बनता है तो सरकार उसके लिए प्रस्ताव ले के आती है और और उसे संसद के दोनों सदनों में पास होने के लिए रखती है | अगर प्रस्ताव दोनों सदनों में पास हो जाता है तब
वो राष्ट्रपति के पास जाता है, अगर राष्ट्रपति को लगता है की प्रस्ताव सही है तो वो उसे मंजूरी देते हैं और क़ानून बन जाता है , अगर उनको लगता है ,कि भाई प्रस्ताव सही नहीं हैं तो उसे दोबारा सरकार के पास विचार के लिए भेजते हैं अगर सरकार दुबारा उसे राष्ट्रपति के पास भेजे तो राष्ट्रपति उसे मंजूरी देने के लिए बाध्य होते हैं |
“चायवा ठंढा हो जाएगा “ तिवारी जी बीच में टोके |
गुप्ताजी ने चुस्की भरी और आगे शुरू किया , “ देखिये अगर इस बीच कभी सरकार को लगता है की कोई कानून बड़ा जरूरी है और संसद का सत्र बुलाना संभव नहीं है तो वो “आर्डिनेंस” ले के आती है और उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजती है , राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वो आर्डिनेंस ६ महीने तक कानून बबन रह सकता है , उसके ६ महीने के अन्दर सरकार को उसे दोनों सदनों में पास करवाना होता है अगर ऐसा नहीं हो पाया तो वो कानून निरस्त हो जाएगा |”
बात साफ़ हो गयी थी और जो हम समझे वो ये की अगर कोई बड़ा जरूरी कानून हो तो सरकार का फ़र्ज़ भी है की उसे तुरंत बना के लागू करवाए |
मगर तिवारी जी की दाढ़ी में खुजली बाकी थी सो पूछ दिए इ बताये गुप्ताजी राहुल बाबा अपने सरकार का आर्डिनेंस फाड़ने वाले हैं, ऐसा काहे ? अरे भाई आर्डिनेंस बना होगा तो पी एम् साहेब मैडम जी से तो परमिशन ले के न आर्डिनेंसवा बनाए होंगे जी , पहिलहीं मना कर दिए होते |
आ पहिले तो इ बताइये की इ ऐसा कौन सा जरूरी कानून है जिसको बनाना बड़ा जरूरी था |
गुप्ताजी जबाब देने की मुद्रा में थे और मेरे कान खरगोश जैसे खड़े हो गए |
“देखिये , सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका के सन्दर्भ में एक फैसला सुनाया था की जो भी दागी विधायक जिनको 2 साल या उससे ज्यादा की जेल हो गयी हो उसकी सदन की सदस्यता रद्द हो जायेगी और सजा के ६ साल बाद तक वो कई चुनाव भी नहीं लड़ सकते | “
“बड़ा बढ़िया फैसला था जी गुप्ताजी , भाई मजा आ गया “ हम से रहा न गया |
फिर गुप्ता जी बोलते गए “ लेकिन सरकार को ये फैसला पसंद नहीं आया और इसके फैसले के खिलाफ कानून बनाने के लिए आर्डिनेंस ले आई , वही जिसको राहुल बाबा बकवास बोल दिए हैं और फाड़ के फेक देने के लिए बोले हैं |
तिवारी जी उछल पड़े “तो क्या गलत है भाई, राहुल बाबा एक दम सही काम किये हैं मानना पड़ेगा “
गुप्ताजी अब गंभीर हो गए थे चाय का कप नीचे रखे और बोले “भाई काम तो बड़ा बढ़िया किये लेकिन प्रेस के सामने बोले से बढ़िया होता की मनमोहनजी से बोले होते मैडमजी की समझाए होते,
“तो का हुआ ? सच बोले लगी कौनो टाइम थोड़े न होता है और ना कौनो जगह होता है “-तिवारी जी की बाद में दम था |
गुप्ताजी तमतमा गए और बोले “ तिवारी जी , डेढ़ महिना से उनकी माताजी और उनकी सरकार ये आर्डिनेंस बनायी , और सरकार के पास भेज दिया , अगर सच्चे हैं तो बनाने के समय ही बोल दिए होते, इतना ड्रामा काहे भाई | बन गया, चला गया तब नींद खुली इनकी , या इसी वक़्त का मौका तलाश रहे हों की सरकार की बेईज्ज़ती कर के हीरो बन जायेंगे | “
मैंने मन ही मन सोचा
अजीब दुनिया हो गयी है ! आजकल “सच” का भी लोग इस्तेमाल कर लिया करते हैं , मुझे “सच” की “बेबसी” का एहसास पहली बार हो रहा था , वरना आजतक किताबों में यही पढ़ा था “सच” बड़ा “निर्भीक” होता है |
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